पिता का बोध करा मॉ प्रथम गुरु
सत्येन्द्र कुमार शर्मा
पिता का बोध मॉ कराती है।मॉ को गुरु का दर्जा पिता-जनक के बोध कराने से ही शुरू हो जाता है। विश्व में या यों कहें कि धरा पर एक मात्र मानव अपने पिता से भिज्ञ है। अन्य जीव जंतुओं से एक मात्र मानव अलग जीव भी है।
गुरु की महनता शिष्य के गुण ग्रहण करने पर निर्भर करता है।
शिष्य गुरु से अरजीत गुण के प्रकाश पुंज की तरह प्रसार करे
मॉ प्रथम गुरु है। शिक्षक दिवस सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णनन के जन्मदिन को याद स्वरूप मनाया जाता है। लेकिन गुरु पूर्णिमा के साथ गुरु की चर्चा भी की जाती है।
वैसे तो वर्ष के प्राय: सभी 12 माह में पूर्णीमा एक दिन होता है।
साधारण जानकारी के तहत पूर्णीमा के रोज दिन में सूर्य के प्रकाश से तो रात में चांद के शीतल प्रकाश में मानव जीवन चौबीस घंटे प्रकाशित रहता है।किसी भी माह का समापन का दिन पूर्णिमा का होता है। खासकर बरसात के मौसम में जब आसमान में बादल छाए हुए हैं और सम्पूर्ण रात चांद की रोशनी से प्रकाशित होने की बात ही अलग हो जाती है।
अषाढ़ माह के समाप्त होने पर सावन में शिव गुरु पूर्णिमा के मौके पर प्राय: अधिकांश लोगों ने गुरु के महिमा का बखान किया लेकिन गुर पूर्णिमा का बखान देखने को नहीं मिला।
किसी ने लिखा “ऊं श्री गुरूवे नमः।।”
“गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुरेव परंब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः।
देश मे “राजा” समाज मे “गुरु” और परिवार मे “पिता”
कभी साधारण नहीं होते,
“निर्माण” और “प्रलय” दोनों उन्हीं के हाथों में होता हैं।
गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं”
तो किसी ने लिखा”गुरु समान दाता नही, याचक सीष समान
तीन लोक की संपदा ,सो गुरु दीन्ही दान ।।
सम्पूर्ण विश्व मे सद्गुरु के समान कोई दानी नही है
और शिष्य के समान कोई याचक नही है ।
ज्ञान रूपी अनमोल संपत्ति गुरु अपने शिष्य को प्रदान करके कृतार्थ करता है,और गुरु द्वारा प्रदान की जाने वाली ज्ञान रूपी अनमोल सुधा केवल याचना कर के ही शिष्य पा लेता है ।।”