पिता पितृपक्ष पितर तर्पण पूजन पाठ सनातन धर्म परंपरा
सत्येन्द्र कुमार शर्मा
मंगलवार 08 सितंबर : पिता का बोध मॉ कराती है।मॉ को गुरु का दर्जा प्राप्त है तो पिता को पितरों के पितृपक्ष में तर्पण कर सनातन धर्म का बोध कराने अर्थात विश्व में या यों कहें कि धरा पर एक मात्र मानव अपने पिता से भिज्ञ होता है। अन्य जीवों पिता और पितर पितृपक्ष का बोध तक नहीं होता है। हालांकि सृष्टि के नियमों में जननी के साथ जनक का होना भी तैय है।
देवी- देवता व पितृ देव-देवी बड़े ही कृपालु दयालु होते हैं। इस सच्चाई को बचपन से माता-पिता का छत्र छांव जब तक मानव को प्राप्त होता है प्रत्यक्ष देखने सुनने व अनुभव किया जाता है। इन लोगो की कृपा सच्चे व सहज मनुष्य पर सदैव बरसती रहती है।बसर्ते जो लोग उनको नहीं भूलते और समय-समय पर सच्ची भक्ति करते है।
आज आश्विन पितृपक्ष का छठा दिन है।आपके अपनों में जो लोग पितृपक्ष का तर्पण नहीं कर पा रहे है और उनके अपने पिता या माता /दादा-दादी स्वर्ग सीधार गये है उनकी आत्मा की शांति कहें या आत्मशांति कहें दोनों ही एक समान है। कृपा प्राप्ति हेतु आज से भी तर्पण शुरू कर अमवस्या तक जल दे सकते है।पितृ देव-देबी की कृपा प्राप्ति हेतु तर्पण अनिवार्य है।तर्पण कर यदि “पितृ देवेभ्यो नमः”का 108 बार जप कर इसी मंत्र से 11 बार होम व एक बार तर्पण एक बार मार्जन कर दिया जाए तो विशेष कृपा की प्राप्ति होती है।एक पिता के एक से अधिक जितने संतान है सबको तर्पण करना चाहिए । सनातन धर्म के शुरू से यह परंपरा चली आ रही है। इस परंपरा को पिता ने करके दिखाया है। हमें निर्वहन करना है।