पिता और पुत्र के मिलन का महा पर्व है मकर संक्रांति
शहाबुद्दीन अहमद
बेतिया : मकर सक्रांति 14 जनवरी को मनाई जाएगी । इसी तिथि को सूर्य देव धनु राशि से निकलकर, मकर राशि में प्रवेश करते हैं, सूरज के एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने को संक्रांति कहते हैं ,मकर संक्रांति में मकर शब्द मकर राशि को इंगित करता है । जबकि संक्रांति का अर्थ संक्रमण प्रवेश करना होता है, इस दिन गंगा स्नान ,व्रत दान और भगवान सूर्य की उपासना करने का विशेष महत्व है । ऐसी मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन ही भागीरथ के आग्रह पर और तप से प्रभावित होकर गंगा उनके पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम पहुंची, और वहां से होते हुए समुद्र में मिली थी । इस दिन पूजा से पहले नहाने के पानी में गंगाजल, व तिल भी डाला जाता है ,नहाने के बाद सूर्य देव की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। ऐसा
माना जाता है कि मकर संक्रांति के दिन सूर्य अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं, क्योंकि शनि मकर व कुंभ राशि के स्वामी हैं, अतः यह पर्व पिता और पुत्र के अनोखे मिलन से जुड़ा हुआ है । आमतौर पर शुक्र का उदय भी लगभग इसी समय होता है ,इसीलिए यहां से शुभ कार्य की शुरुआत होती है। शनि के घर पहुंचने पर तिल और गुड़ की बनी हुई मिठाई बांटने और खाने की रिवाज सदियों से चली आ रही है, उत्तर भारत में इस दिन विशेष तौर पर खिचड़ी की सेवन की परंपरा है।
एक मान्यता के अनुसार इस दिन तिल का दान करने और इसके सेवन से शनिदेव काफी प्रसन्न होते हैं ,क्योंकि तिल उनकी प्रिय चीज है ,जो लोग तिल का दान करते हैं, उनका राहु व शनि दोष का निवारण जल्द हो जाता है । कहते हैं कि तिल की उत्पत्ति भगवान विष्णु की शरीर से हुई थी, इसलिए इस दिन तिल का महत्व और भी बढ़ जाता है, इसलिए इस पर्व को तिल संक्रांति भी कहते हैं। सूर्य हर माह में राशि परिवर्तन करता है, इसलिए कुल मिलाकर वर्ष में 12 संक्रांतियां होती है, परंतु दो संक्रांतियां सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है, मकर संक्रांति और कर्क संक्रांति, मकर संक्रांति से अग्नि तत्व की शुरुआत होती है ,और कर्क संक्रांति से जल तत्व की, मकर संक्रांति के समय सूर्यदेव उत्तरायण होते हैं ,अत : इस समय किया गया जप- दान , अनंत फलदाई माना जाता है।
मकर संक्रांति के दिन प्रातः स्नान कर लोटे में लाल फूल और अक्षत डालकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं, सूर्य की बीज मंत्र का जाप करें, श्रीमद्भडगवड की एक अध्याय का पाठ करें ,या गीता का पाठ करें ,यथासंभव नए अन्न, कंबल,तिल, घी का दान करें, भोजन में नए अन्न की खिचड़ी बनाएं । भोजन भगवान को समर्पित कर प्रसाद रूप में ग्रहण करें।